20 साल बाद लौटा बेटा.... इंतजार में चल बसी मां.... जाने इतने सालों तक कहाँ रहा ?

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20 साल बाद लौटा बेटा.... इंतजार में चल बसी मां.... जाने इतने सालों तक कहाँ रहा ?

 





ठीक 21-22 वर्ष पहले की बात होगी जब एक 15-16 वर्ष का युवा घर से लापता हो जाता है और परिवार के खोजबीन के लाखों प्रयास विफल होते हैं। पिता पर हत्या का इल्ज़ाम लगता है। मां की फरियाद से 2 दशक बाद बेटा सकुशल लौट आता है लेकिन तब तक मां नहीं रही।



यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है हकिकत है.... 

बज्जू पंचायत समिति क्षेत्र के RD 860 निवासी सुनील गोदारा 22 वर्ष पहले घर से लापता हो गया था।  परिवारजनों ने खोजा लेकिन मिला नहीं.... लोगों ने कहा पिता ने हत्या कर दी। हकिकत परिजनों को ही पता थी लेकिन कहने वालों को रोके कौन? “जितने मुंह उतनी बातें”.... सालों साल तक अपने माथे पर उस कलंक को ढोते रहे जो गुनाह उन्होंने किया ही नहीं..... भला पिता भी अपनी औलाद को मार सकता है.... खैर लोगों का क्या है उनका नजरिया व्यक्ति के प्रति पल-पल बदलता रहता है।

 


घर से निकला सुनील सुरतगढ़ पहुंचा और वहां से पंजाब जहां उसे कुछ सालों तक बंधक बनाकर रखा और फिर कुछ वर्ष यूपी में..... एक ट्रक वाला मसीहा बनकर आया और सुनील को ले आया जयपुर जहां अपने बेटे की तरह रखा‌। उस शख्स का नाम राजाराम जाट है जो अब इस दुनिया में नहीं रहे। सुनील जयपुर में बस ड्राइवर की जॉब करने लगे। कुछ दिन पहले रात में सोते वक्त सुनील के सर में दर्द हुआ साथी ड्राइवर ने हॉस्पिटलाइज किया। 


सही हुआ तो उसने अपने साथी ड्राइवर से कहा मुझे घर जाना है.... तब साथी बोला घर जाना है लेकिन तुम्हारा घर है कहां? वह बोला बज्जू  साथी ने मोबाइल में बज्जू सर्च किया फिर गाड़ी लेकर सुनील को पहुंचाने निकल गए। परसों सायं 8 घर पहुंचे.... 22 वर्ष बाद लोटे सुनील को देखकर परिवार में हर कोई हतप्रभ थे.... खुशी का ठिकाना न रहा।


सुनील ने पुछा मां कहां है.....क्या कहते परिवार के लोग! मांजिसने तुम्हें गढ़ा ... तुम्हारे वियोग में अपने प्रभु से तुम्हारे लौट आने की फरियाद करती रही। तुम थोड़ा लेट लौटे तबतक मां के सब्र का बांध टूट पड़ा और मां न रही। जीवन भर मां बेटे के वियोग में रोती रही और अब बेटा अपनी आंखें नम किए बैठा है।


पिता जिन्होंने 2 दशक तक अपने ही बेटे की हत्या के इल्ज़ाम दंश झेला पथराई आंखों से बेटे को देखे जा रहे थे।

घर पर सुबह होते होते मिलने वालों का तांता लगना शुरू हुआ जो दो दिन बीत जाने के बाद अब भी जारी है।


परिजनों ने साथी ड्राइवर का साफा पहनाकर, ड्रेस-पट्टू करवाकर बहुमान किया।

 


यह धरती गोल हैं, इस पर घुमते-घुमते हम एक न एक दिन उसी ठोर पर आ रुकते हैं जहां से सफ़र की शुरुवात होती है। सुनील और उनके परिजनों के जीवन के अनुभव भले ही कड़े हो लेकिन मिलन ने सारे दु:ख-दर्द को भुला दिए हैं।

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